Biography of -K.P Radhamani

       Biography of -K.P Radhamani _the human Librarian In Hindi.

 Power of Positive-


हेलो दोस्तों एक बार फिर से आपका स्वागत है इस साइट पर जिसमें आपको बहुत सी मोटिवेशनल कहानियां और कहावतें देखने को मिलती है तो इसी कड़ी में आज आगे बढ़ते हुए मैं लेकर आया हूं आपके लिए एक अच्छा सा  ब्लॉग इसका टाइटल है


 आज मैं आपको बताऊंगा एक ऐसी महिला के बारे में जिसे लोग वाकिंग लाइब्रेरियन भी कहते हैं जो कि किताबों को घर पर जाकर बैठती है और इनका नाम है कि  केपी  राधा मणि  जो कि एक लाइब्रेरियन है केरल की


 आइए जानते हैं कि इन्होंने क्या बड़ा काम किया है -


आपको जानकर हैरानी होगी कि इन्होंने लगभग 10 सालों से पढ़ने के प्रति केरल में जागरूकता फैलाए रखी है और इसी कड़ी में यह अभी भी अपना काम कर रही है|

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. रोज 5 से 6  किलोमीटर पैदल चलकर यह घर-घर जाकर किताबें  बांटती है|


  अब आइए जानते हैं इनकी जीवनी के बारे में-


65 साल की उम्र में रिटायरमेंट समझते हैं और कुछ लोग तो रिटायरमेंट ले लेते हैं और दुनिया भर में घूमते हुए अपना वक्त देते हैं लेकिन कहने वाली कहानी सबसे अलग है जो कि केरल के के वायनाड की मोठाकरा मैं पिछले  मैं पिछले एक दशक से रोजाना लोगों के घर-घर घूमकर उनको किताबी देती है|


 राधा मणि को लोग केरल की  चलती फिरती या वोकिंग लाइब्रेरियन भी कहते हैं। 

राधा मणि जी का कहना है कि उन्हें किताबों से बहुत बड़ा  लगाव  है उन्हें किताबें पढ़ना भी लगता है| इसलिए उन्हें अखबार पढ़ने के खबरें सुनाना उनका रोज का नियम है|


 पूरी की पूरी किताब पढ़ कर उन्हें सुना देती| 

 रिश्तेदार को पत्र में  है  मैं लिख कर वही थी|  रिश्ता बन उन्हें पता चला|  उन्हें लगने का चुनाव बाद में अच्छा लगा|  मैंने 2010 में वायनाड के मोठाक्करा में लाइब्रेरियन की नौकरी।  लेकिन ग्रामीण काम में व्यस्त रहने के कारण की  कि राधा   मणि को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता था और उन्हें पुस्तकालय जाने में भी दिक्कत होने लगी थी|


 खास तौर पर  महिलाएं ज्यादा दिक्कतों का सामना करती थी और वह भी लाइब्रेरी नहीं जा पाती थी, ऐसे में उन्होंने तय किया कि लाइब्रेरी वह नहीं जा सकती लेकिन लाइब्रेरी  को ही अपने घर लाया जाए और बाद में उन्होंने वैसा ही किया उन्होंने यह चुनाव किया कि वह घर-घर जाकर किताबें  देंगी|

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और लोगों को उनके प्रदान करें इसी कारण उन्हें चलती फिरती लाइब्रेरी के नाम से जाना जाने लगा|

 फिर बाद में उन्होंने यह चुनाव किया कि वह किताबों को कपड़े के बैग में लेकर कर कर बैठेगी और इससे ज्यादा फायदा बूढ़े और घर में काम करने वाली महिलाओं को होने लगा और देखते देखते हुए भी ज्यादा ज्ञान लेने लगे|


 क्योंकि अब उन्हें लाइब्रेरी जाने की कोई चिंता नहीं थी क्योंकि केपी राधा मणि ने  उनकाकाम आसान कर दिया था और फिर किताबें देखकर 8 दिन बाद वापस ले लेती और इसका सारा लेखा जोखा अपने एक रजिस्टर में ले लेती थी|



 गांव में ऐसे ही जनजातीय इलाके हैं जहां गाड़ी से चलना मुश्किल काम है|  समुदाय के बच्चों के लिए किताब नहीं है , और इसी से ज्यादा दिक्कतऐसे नहीं बे रोज 4 से 6 किलोमीटर जाकर उन्हें भी किताबें पढ़ती थी|


 माना कि यह काम बहुत मुश्किल था और थकान भी था लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि अब लोगों को शिक्षित करना ही है चाहे कुछ भी हो जाए और  इसलिए उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और कुछ कसर लोगों की किताबों के प्रति रुचि ने भी कर दी थी|



 अब आलम यह है कि बच्चे फोन कर देते हैं गांव में महंगे नहीं किताब लोगों को महज ₹5 में पढ़ने को मिल जाती है लोग मैगजीन तक ही सीमित नहीं है, विभिन्न विषयों की किताबें मलयालम हिंदी अंग्रेजी, मैं करीबन 11 हजार से भी ज्यादा किताबें है और गांव वाले उन्हें रोज पढ़ते हैं राधा नहीं बताती है कि इतने सालों में रहकर  लोगों को बस किताबों के प्रति जागरूक करना चाहती है |


और इसी को देखते हुए भी महीने में करीब 500 से 600 किताब के लोगों के घरों में  पहुंच आती है,  पिछले 10 सालों में लगातार चल ही रहा है  कोरोना उन्हें ज्यादा दिक्कत भी हुई और थोड़ी परेशानीजिस कारण उन्हें बीच में ही थोड़ा ब्रेक ले लिया था लेकिन वह घर पर ही पढ़ना लिखना जारी रखा|राधा मणि जी बताती है कि पढ़ने से आप की दुनिया मिसाल हो जाती है| 


और इससे एक नजरिया विकसित होता है|लेकिन अब तो लेखक भी उन्हें नए नए सुझाव देते हैं कि अपनी लाइब्रेरी में में कौन-कौन सी किताबें रखें जिससे लोगों को ज्यादा फायदा मिले|



 इसलिए कहते हैं ना जो लोग दूसरों की भलाई सोचती हैं वह एक ना एक दिन लोगों का सपोर्ट भी पाते हैं और उन्हें लोगों से कुछ मदद भी मिल जाती है जिसका एक अच्छा उदाहरण आपके सामने दिया है|


 कैसा लगा यह   ब्लॉग कमेंट कर जरूर बताना और अगर अच्छा लगा है तो मैं समझूंगा कि मेरी मेहनत बेकार नहीं गई क्योंकि आपने यहां आकर कुछ ना कुछ सीखा ठीक है और अपना समय सही जगह है लगाया है


 धन्य वाद| 


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