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 ईसा मसीह का जीवन परिचय  में - Jesus Christ Biography in hindi 

Jesus Christ Biography in hindi



क्या आपको पता है की इसाई धर्म  का संस्थापक कौन है ? नहीं तो आपको जानकारी के लिए बता दू की इसाई धर्म के  संस्थापक यीशु थे , और इसी लिए इनके बारे में जानना भी हमारे लिए बहुत जरुरी हो जाता है , लेकिन साथ ही 25 दिसम्बर को इनका जन्म दिन मनाया जाता है , जिसे हम क्रिस मस के तौर पर मनाते है | 


इसके लिए आज में आपके लिए लेकर आया हु ईसा मसीह का जीवन परिचय हिंदी में , बायोग्राफी , या फिर ऐसे कह सकते है की jesus christ biography in hindi , jesus christ story, birth story , jesus christ history in hindi , and who is founder of christain full story- 


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वास्तविक नाम 

यीशु 

और भी नाम 

नसरत का यीशु , गालील का यीशु , ईशा मसीह 

जन्म 

4 -6 ईसा पूर्व 

मरने की तिथि 

30 -33 ईशा पूर्व 

मौत का कारण 

सूली पर चदाना 

मौत होने की जगह 

जेरुसलम , यहूदिया , रोमन साम्राज्य 

घर 

यहूदिया ( इसराइल )

धर्म 

यहूदी धर्म 

इनके पिता का नाम 

जोसेफ 

इनके माता का नाम 

मरियम 

ईसा  मसीह का जन्म स्थान 

बेथ्हलम यहूदिय 

संस्थापक 

इसाई धर्म के 


यीशु को इसाई धर्म का संथापक माना जाता है , लोगो का मानना है की यीशु भगवान् के बेटे थे , इन्हें कई नामो से जाना जाता है जैसे की ईसा मसीह , जीसस क्राइस्ट , नसरत का यीशु , जैसे नामो से  इनका जन्म 4 इ .पु को बेथ लेहेम , में और उस समय वह रोमन साम्राज्य होता था , इसके पिता का नाम युसफ और माँ का नाम मरियम था , 


साथ ही इनके बारे में जानकरी बाइबल में भी मिलती है , जैसे की यीशु ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका मतलब है ‘इसुआ ‘ यानी की जीवन देने वाला |  जिसके कारण इन्हें भगवान् का दर्ज़ा दिया गया है | 



बाइबल में बताया गया है की यीशु की माँ मरियम और एलिजाबेथ दोनों बहन थी , जिसमे एलिजाबेथ के जॉन नाम का एक बेटा था , लेकिन मरियम के कोई संतान नहीं थी , और इसी कारण इश्वर में अपना दूत यीशु थे | कई जगह से यह साक्ष्य मिलते है की 25 दिसम्बर के दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था , और ईसिस साल क्रिश मश डे के रूप में मनाया जाता है और यहूदी लों इस दिन की हनुकाह के पर्व के रूप में मनाते है |


अगर अहम् इशा मसीह के जन्म के बारे में बात करे तो इनका जन्म फिलिस्तान में हुआ था, और उस समय यहूदियों का कब्जा हुआ करता था | जो की बेहद क्रूर होते थे , जिसने एक दिन सभी नवजात बच्चो को मारने के आदेश दे दिए , और जब  उन्हें यहूदियों के बारे में पता चला की वो एक अद्भुत संतान है तो तो उन्हें अपना राज्य खोने का दर सताने लगा |   साथ ही वे अपने पिता के साथ लकडिया कटाने का काम करते थे , और यह काम उन्होंने ३० साल की उम्र तक जाती रखा , और बाद में ३० साल की उम्र के बाद उन्होंने यह फैसला लिया की अब वे अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगाना है | 


भगवान् ईसा मसीह में चमत्कारों के बारे में |

बताया जाता ही ईसा मसीह में अपने जीवन काल में 37 चमत्कार दिखाए थे , जिनमे से तिन तो बिलकुल भी भरोषा नहीं करने वाले थे , जैसे की उन्होंने माउंट पहाड़ी में जो लोग मर चुके थे उन्हें वापस जिन्दा कर दिया था | और अगर हम सबसे बड़े चमत्कार की बात करे तो उनके परलोक जाने की घटना थी , जिसमे वे अपने प्रेरितों के साथ आसमान में जाकर लुप्त हो गए |



उनका मानना था की भगवान् एक है जो की अच्छे लोगो से हमेशा प्यार करते रहेंगे , और साथ ही सभी इंसानों में दया का भाव होना चाहिए जो की उन्हें और भी श्रेष्ठ बना सके , और साथ ही वे लोगो को खुद मसीहा बताते है और इंसानों को स्वर्ग का द्वार बताते है |



ईसा मसीह पर बनी फिल्मे कौनसी है ?

3नासरत का यीशु , मसीह का जूनून , द्वितीय मेसिया  आदि |



यीशु को सूली पर क्यों चढ़ाया गया था |

क्यों की यीशु के रोमन साम्राज्य के खिलाफ राजाओ के अधिकारों को स्वीकार नहीं किया था , इस लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था |  उनके उस दिन सूली पर चढ़ने को आज हम गुड फ्राइडे के तोर पर मानते है | 

यीशु ने अपने सूली चढ़ाये जाने से पहले अपने शिष्यों के साथ भोजन किया था और यह भी कहा था की आगे जाकर उनका एक शिष्य उनके धोखा देगा , और इसके साथ ही यीशु की गिरफ्तारी के दिन उनके ३ शिष्यों के उन्हें धोखा दिया भी |


यीशु मरना नहीं चाहते थे वे दुःख और दर्द का सामना भी नहीं करना चाहते थे , इसलिए उन्होंने भगवान् से यह प्राथना की की अगर संभव हॉट ओ प्याला मेरे आगे से ही गुजर जाए |


और आखिर में राजा में उनके कोड़े मारने और साथ ही सूली पर चढ़ाये जाने की सजा सुनाई और आखिर में हुआ भी वैसा ही |



ईसा मसीह को सूली पर कब चढ़ाया गया हिंदी में |

इसके बारे में कोई पुष्टि नहीं है की यीशु को सूली पर कब चढ़ाया गया था लेकिन फिर भी बाइबल के विद्वानों की माने तो की उनके क्रूस पर चढ़ने की तिथि या तो 7 अप्रैल, 30 ईस्वी या शुक्रवार,  या फिर 3 अप्रैल, 33 ईस्वी थी।


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